ज्येष्ठ पूर्णिमा 2024 की तिथि और समय
ज्येष्ठ पूर्णिमा का हिंदू पंचांग में विशेष महत्त्व होता है और इसे विशेष धार्मिक विधियों और पूजा के साथ मनाया जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा 2024 की तिथि 19 जून को है। इस दिन का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व होता है, क्योंकि यह दिन चंद्र दर्शन के साथ जुड़ा हुआ है।
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 18 जून 2024 को रात्रि 10:58 बजे होगा और इसका समापन 19 जून 2024 को रात्रि 09:22 बजे होगा। इस अवधि में चंद्र दर्शन का समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, और भक्तगण इस समय में चंद्र दर्शन और पूजा करते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भक्तगण उपवास रखते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और चंद्र देवता की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है और इस दिन की गई पूजा और दान का कई गुना फल प्राप्त होता है।
इस दिन को धार्मिक अनुष्ठानों, हवन, और विशेष पूजा विधियों के साथ मनाया जाता है। भक्तगण मंदिरों में जाकर भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं और विशेष मंत्रों का जाप करते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में सामूहिकता और धार्मिक सद्भाव को भी प्रोत्साहित करता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का धार्मिक महत्त्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा हिंदू धर्म में अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखती है। इस दिन को विशेष रूप से भक्तों द्वारा पवित्र माना जाता है और कई धार्मिक अनुष्ठान और व्रत किए जाते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन का महत्त्व पौराणिक कथाओं और धर्मग्रंथों में भी वर्णित है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि महाराज से तीन पग भूमि मांगी थी। इसी दिन का महत्त्व भगवान शिव के भक्तों के लिए भी अत्यधिक है। ज्येष्ठ पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्त्व है, क्योंकि यह दिन पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। गंगा स्नान से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस दिन किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में मुख्य रूप से व्रत, दान, और पूजा शामिल हैं। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु और शिव की आराधना करते हैं। व्रत रखने वाले लोग दिन भर निर्जला रहते हैं और रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही जल ग्रहण करते हैं। इसके अतिरिक्त, इस दिन दान करने का भी विशेष महत्त्व है। अन्न, वस्त्र, और धन का दान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा विधि का पालन किया जाता है। भगवान विष्णु और भगवान शिव की मूर्तियों को स्नान कराकर, वस्त्र धारण करवाकर, और विविध प्रकार के पुष्प और फल अर्पित किए जाते हैं। भक्त विशेष मंत्रों का जाप करते हैं और भगवान की आरती करते हैं। इस प्रकार, ज्येष्ठ पूर्णिमा का धार्मिक महत्त्व अत्यंत व्यापक और गहन है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा की पूजा विधि
ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन की पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है और इसे शास्त्रीय नियमों के अनुसार करना चाहिए। पूजा की शुरुआत प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने से होती है। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल या पवित्र जल से शुद्ध किया जाता है।
पूजा में आवश्यक सामग्री में फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, चंदन, रोली, मौली, पान, सुपारी, नारियल, और मिठाई शामिल होते हैं। पूजा की थाली में इन सभी सामग्रियों को व्यवस्थित तरीके से रखा जाता है।
सबसे पहले भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र का ध्यान किया जाता है। इसके बाद दीप प्रज्वलित करके धूप और दीप से आरती की जाती है। भगवान विष्णु को पुष्प अर्पित किए जाते हैं और अक्षत चढ़ाए जाते हैं। चंदन और रोली से तिलक किया जाता है।
पूजा के दौरान विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है। मंत्र उच्चारण के साथ-साथ, भगवान विष्णु की स्तुति में भजन और कीर्तन भी किए जाते हैं। ध्यान रखें कि पूजा के दौरान मन को शांत और एकाग्रचित रखना चाहिए।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन विशेष अनुष्ठानों का भी महत्त्व होता है। इस दिन हवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। हवन सामग्री में आम की लकड़ी, घी, कपूर, और हवन कुंड प्रमुख होते हैं। हवन के दौरान ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
अंत में, भगवान विष्णु की आरती उतारकर प्रसाद वितरण किया जाता है। प्रसाद में मिठाई, फल, और पंचामृत प्रमुख होते हैं। इस प्रकार, ज्येष्ठ पूर्णिमा की पूजा विधि संपन्न होती है, जिससे भक्तों को शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के लाभ और सावधानियाँ
ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत और पूजा धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। सबसे पहले, ज्येष्ठ पूर्णिमा के व्रत से मानसिक शांति और आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है। जब व्यक्ति उपवास करता है, तो उसका मन और शरीर दोनों ही शांत रहते हैं, जिससे ध्यान करने में आसानी होती है।
इसके अलावा, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों शुद्ध होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा का महत्व है। उनकी आराधना करने से भक्तों को आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
हालांकि, व्रत और पूजा करते समय कुछ सावधानियों का पालन करना आवश्यक है। सबसे पहले, उपवास के दौरान शरीर को हाइड्रेटेड रखना महत्वपूर्ण है। पर्याप्त मात्रा में पानी और फल का सेवन करना चाहिए ताकि शरीर में ऊर्जा बनी रहे। इसके अलावा, पूजा के दौरान ध्यान केंद्रित रखना और विधिपूर्वक सभी अनुष्ठानों का पालन करना चाहिए।
इस दिन विशेष रूप से शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। पूजा स्थलों और घरों की साफ-सफाई करना और स्वयं भी शुद्ध वस्त्र धारण करना आवश्यक है। यदि किसी कारणवश उपवास रखना संभव न हो, तो भी ईश्वर की आराधना और ध्यान करना चाहिए, जिससे मानसिक और आत्मिक शांति की प्राप्ति हो सके।